Friday, 15 February 2013

Cancer Cured by Guru Siyag Siddha Yoga

Video of Cancer Patients

Cancer patient's Self written statement




मैं २९ जून १९९५ को सद्गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग से दीक्षित हुआ। दूसरे दिन ही मैंने परिवार के सदस्यों को फोटो के समक्ष बिठाकर ध्यान करवाया। सबका ध्यान लगा। उसके बाद मैंने विद्यालय में प्रार्थना स्थल पर गुरुदेव के फोटो से ध्यान करवाया। उसके बाद विभिन्न विद्यालयों में एवं अन्य लोगों को भी फोटो के समक्ष बिठाकर ध्यान करवाने लगा। गुरुदेव की कृपा से एड्स, कैंसर सहित सभी बीमारियों और नशों से लोग मुक्त होने लगे। मेरे जीवन में भी एक महत्वपूर्ण घटना घटी- जिसका मैं यहां पर जरूर जिक्र करना चाहूंगा। जब मेरे भतीजे पुखराज ैध्व प्रह्लादराम, उम्र १४ वर्ष, को जनवरी २००३ को अचानक पेट में दर्द हुआ, कुछ दिन बाडमेर से इलाज करवाने के बाद जोधपुर महात्मा गाँधी अस्पताल में पेट का ऑपरेशन करवाया। कुछ दिन पश्चात् इसके पीठ में गांठ बन गई। फिर अहमदाबाद सिविल अस्पताल में जाँच करवाई गई तो डॉक्टरों ने कैंसर घोषित कर दिया। अहमदाबाद में कीमोथैरेपी के पश्चात् घर आने पर ब्लड मात्र ३ एम.एल. हो गया और नाक से नकसीर (खून) आने लगी। बाडमेर  अस्पताल में भर्ती के बाद पेट में सूजन (आफरा) आ गया। जिसके कारण तुरन्त जोधपुर अस्पताल भर्ती करवाया। तीन चार दिन तक पेट का आफरा नहीं मिटने के कारण इसे पी.बी.एम. कैंसर अस्पताल, बीकानेर लेकर गया, वहाँ आफरा उतारने के बाद कीमोथैरेपी दी गयी परन्तु घर आने पर पूरे शरीर में विशेष कर गुप्तांग व पैरों में अत्यधिक सूजन आ गयी। चिकित्सा विज्ञान के सारे ईलाज फैल हो चुके थे पैसों की बरबादी के बाद भी शरीर स्वस्थ नहीं हो रहा था। इस कारण मैं इसे सद्गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग के ध्यान योग शिविर में लाया और गुरुदेव से दीक्षोपरान्त मंत्र जाप-ध्यान करवाना प्रारम्भ किया तथा गुरुदेव से प्राप्त लौंग का सेवन करवाया। उसके कुछ दिनों के बाद धीरे-धीरे इसके स्वास्थ्य में सुधार हुआ। पीठ के पीछे वाली गाँठ स्वतः फूटकर ठीक हो गयी तथा उसके बाद से कोई दवाई नहीं ली और यह पूर्णतः स्वस्थ हो गया। कीमोथैरेपी के समय सिर के बाल झड गये थे नाम-जाप व ध्यान से सिर के बाल वापस आ गये, मेरी आम जन से यही राय है कि इस दर्शन का लाभ प्राप्त करने के लिए आप गुरुदेव की तस्वीर का ध्यान करो तथा सभी कष्टों से मुक्ति पाओ।
- लक्ष्मण राम चौधरी (व्याख्याता)
 सिणधरी रोड, रामनगर, बाडमेर




2.


 प्र. आप क्या कार्य करते थे व कहाँ  पर ?
उ. मैं मुम्बई में शेयर मार्केट में दलाली का कार्य करता था तथा मैं फलौदी का पुष्करणा ब्राह्मण हूँ। मुम्बई में मेरा अच्छा कारोबार चल रहा था।
प्र. आपको कैंसर के बारे में कब मालुम हुआ उसके बाद आपने कहाँ पर चैकअप कराया?
उ. जब मैं १९९७-९८ में मुम्बई था, तो मुझे मुँह के दांयी ओर के गाल में थोडी सूजन महसूस हुई। फिर गांठ धीरे-धीरे बढने लगी। और मैंने डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने कहा कि आपको कैंसर है। और १५ दिन के अन्दर तो मुझे चारपाई पकडनी पडी, मुँह बिल्कुल बंद हो गया। बोम्बे हॉस्पीटल ट्रस्ट में चैकअप कराया तथा दो महीने तक डॉ. एन.के. आप्टे व एन.एच. वंका का इलाज चला। कोई फर्क नहीं पडा फिर सुख-सागर स्थित उनके प्राईवेट चेम्बर में हमने दो महीने तक इलाज करवाया। लगभग अलग-अलग जगह ८ महीने तक ट्रीटमेन्ट लेते रहे लेकिन फर्क पडने की बजाय रोग बढता ही गया। तंग आकर मेरी पत्नी व घर वाले मुझे जोधपुर ले आए।
प्र. जोधपुर में आपने कहाँ पर इलाज कराया और डॉक्टरों ने क्या कहा?
उ. जोधपुर आकर मथुरादास माथुर हॉस्पीटल में डॉ. अरविन्द माथुर को दिखाया। उन्होंने सारी रिपोर्ट देखकर कहा कि आप तुरन्त मुम्बई चले जाओ, आपको शुरूआती कैंसर है, इसलिए आप मुम्बई जाकर इसका तुरन्त इलाज कराओ। तो मेरी पत्नी ने कहा कि मुम्बई से तो हम लोग जोधपुर आएं हैं, अब आप ही कुछ इलाज करो तो डॉक्टर साहब ने कहा कि यहाँ इनका इलाज संभव नहीं हैं।
प्र. ऐसी स्थिति में फिर आपको कैसा महसूस हुआ तथा आपने क्या कदम उठाया?
उ. मैं तो पूरी तरह निराश हो चुका था। मेरी पत्नी भी बहुत रोई कि आखिर क्या करें? लेकिन प्रयास जारी रखे। एक दिन, और तो कोई सहारा था नहीं, मुझे कुछ आशा की किरण नजर आई। सरदारपुरा प्प्दक बी रोड पर श्री रामदयालजी चौधरी के एस.टी.डी. बूथ पर, उनसे मुलाकात हुई, उस समय पूज्य गुरुदेवजी इनके मकान में रहते थे। रामदयालजी ने बताया कि आप गुरुदेव का ध्यान करो तो पूर्णतः ठीक हो जाओगे।
प्र. आपने दीक्षा कब व कहाँ ली?
उ. मैंने २ अप्रेल, १९९८ को गांधी मैदान सरदारपुरा, जोधपुर में शक्तिपात-दीक्षा लेकर गुरूदेव द्वारा बताए नाम (मंत्र) जाप व ध्यान शुरू किया।
प्र. दीक्षा के बाद आप में क्या परिवर्तन आया?
कृ मैंने गुरूदेव से मंत्र-दीक्षा लेकर गम्भीर नाम जाप और ध्यान शुरू किया, तो मेरा ध्यान लगना शुरू हो गया। विभिन्न प्रकार की यौगिक क्रियाएं ध्यान के दौरान होती थी। २७-२८ दिन बाद गाँठ फूट गई तथा बिना ऑपरेशन किये ही दो दिन के अन्दर सारी गंदगी निकल गई तथा तीसरे चौथे दिन तो मैंने नमक-मिर्च सहित खाना खाना शुरू कर दिया, जो पिछले ८ या ९ महीने से केवल ज्यूस के सहारे ही जी रहा था।
प्र. क्या वापस डॉक्टर से चैकअप कराया ?
उ. नाम-जाप व ध्यान से मेरे शरीर में अचानक इतना परिवर्तन आया कि हमने पांचवी रोड स्थित डॉ. सी.एस. कल्ला से वाई.एफ.सी. करवाई। आर.पी. में रिपोर्ट जाँच के लिये दी। ५ दिन में रिपोर्ट बिल्कुल अच्छी आई। डॉ. साहब ने कहा कि आपको कैंसर नहीं है। जब मैं पूर्णतः हट्टा-कट्टा हो गया तो मेरी पत्नी के साथ डॉ. अरविन्द माथुर को दिखाने गए। डॉ. साहब को कहा कि आप ने तो कहा था कि कोई इलाज नहीं, लेकिन मैं तो जिन्दा हूं। और उनको बोम्बे हॉस्पीटल की रिपोर्ट दिखाई जिसमें कैंसर घोषित था। डॉ. साहब ने उसको देखकर कहा जो आज की विज्ञान का अधुरापन साबित होता है। ’’उन्होंने कहा कि जिनकी रिपोर्ट है तो यह आदमी नहीं है और यदि आदमी यहीं है, तो इनकी जो रिपोर्ट आप दिखा रहे हो यह सही नहीं है। ऐसा असम्भव है‘‘ तो मेरी पत्नी ने क्रोध में आकर कहा कि मैं पहले भी इनके साथ आफ पास आई थी और आज भी आई हूँ, क्या भारतीय संस्कृति में दो पति रखना जायज है?और हम लोग अपने घर आ गए।
प्र. आज आप कैसा महसूस करते हैं?तथा आम जन को क्या संदेश देना चाहते हो? न जाने आपकी तरह कैंसर सहित असाध्य रोगों से कितने ही लाखों-करोडों लोग जीवन व मृत्यु के बीच तडप रहे हैं?
उ. आज दिनांक ४ मई २००८ को मैं कह रहा हूँ कि जीवन गुरू कृपा का ही महाप्रसाद है। जबकि मेरा जीवन तो १९९८ को ही भौतिक विज्ञान के हिसाब से समाप्त हो चुका था। बीमारी के इलाज में ६०-७० हजार रूपये खर्च कर दिये लेकिन गुरूदेव के चरणों में बिना दवाई के व बिना पैसे ठीक हो गया। मेरी आम जन से यही राय है कि गुरूदेव से दीक्षा लेकर अपना जीवन सफल बनाओ।
प्र. क्या आपने कैंसर की नेगेटिव जाँच कराई?
उ. बीमारी में मेरे गहने व सम्पत्ति सारी बिक गई इसलिए में दुबारी जाँच नहीं करा पाया लेकिन आज दस साल से नेगेटिव जाँच व रिपोर्ट के रूप में मैं स्वयं जिंदा बैठा हूँ। पूर्ण स्वस्थ व अपने घर का काम काज कर रहा हूँ।
गुरूदेव श्री रामलाल जी सियाग की शक्तिपात दीक्षा से इतना बडा चमत्कार का लाभ हुआ। शायद किसी को विश्वास भी न होगा कि दीक्षा से कैंसर जैसा रोग ठीक हो सकता है। लेकिन मैं जवाहरलाल बोहरा जीता जागता उदाहरण हूँ।
मेरे लिए तो गुरू जी साक्षात् भगवान् बनकर ही घर आए।                        
- जवाहरलाल बोहरा
ब्ध्वण् सुल्तान सिंहजी चारण
व्चचण् कुम्हारों का मंदिर, प्ेज बीरोड,
सरदारपुरा, जोधपुर (राज.)




3.


सर्व प्रथम गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग महाराज को बारम्बार नमन् व उनके चरणों में प्रणाम करता हूँ।
मेरी शादी ११ फरवरी २००८ क हुई। मेरे पति की नौकरी धर चूला (पिथोरागढ) उत्तरांचल में है। मैं उनके साथ वहाँ चली गई। अप्रैल, मई, जून तक तो ठीक रही, जुलाई में मुझे अचानक हल्का पेट दर्द होना शुरू हुआ। वहाँ के छभ्च्ब् सरकारी अस्पताल में दिखाया उन्होंने पेट दर्द की दवा दी और पेट दर्द ठीक हो गया। ऐसे ही जब भी दर्द होता दवा लेने पर ठीक हो जाता था। क्योंकि वहाँ पर बडे-बडे अस्पतालों की कोई सुविधा नहीं हैं। शादी की पहली राखी पर, मैं जब घर आई तो पति ने कहा कि यहाँ किसी बडे अस्पताल में आपकी जाँच करवा लें। फिर मैं यहाँ उम्मेद अस्पताल में दिखाने गई तो डाक्टर ने चैक करने के बाद सोनोग्राफी करवाने को कहा, फिर मैंने सोनोग्राफी करवाई, रिपोर्ट देखकर डॉक्टर ने कहा इनके बच्चेदानी के पास गांठ हो रही है और उसको ऑपरेशन के द्वारा निकालना पडेगा, आप यहाँ भर्ती हो जाइए। मेरा व मेरे पति का मन नहीं माना, हमने सोचा शायद उन्होंने ठीक तरीके से जाँच नहीं किया। हमने और दो तीन सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में जाँच करवाई। फिर मैंने राजदादीजी, बत्रा नर्सिंग होम में टेस्ट करवाये, उन्होंने भी टेस्ट करके वही जवाब दिया, फिर मैंने बत्रा अस्पताल में ही अपना ऑपरेशन करवाया।
२७ अगस्त को मेरा पहला ऑपरेशन हुआ, ऑपरेशन के दौरान डाक्टर ने मेरी पहली ओवरी हटा दी और कहा कि गांठ ने त्पहीज व्अमतल को पूरा कवर कर लिया था, इसलिए हमें त्पहीज व्अमतल हटानी पडी। फिर उस गांठ को टेस्ट के लिए पैथोलॉजी लैब भेजा गया, जहाँ पहली रिपोर्ट ठीक थी लेकिन दूसरे पैथोलॉजी लैब टेस्ट करवाने पर वहाँ के डाक्टर ने उस गांठ के अंदर कैंसर के कण होने की बात कही। जहाँ मेरा पहला ऑपरेशन हुआ। उन डॉक्टर ने मुझे बोम्बे अस्पताल में दिखाने को कहा फिर मेरे पति मुझे बोम्बे के टाटा मेमोरियल अस्पताल में लेकर गए, जहाँ मेरे लगभग सारे टेस्ट हुए ठसववक ज्मेजए म्ब्ळए ग्.त्ंलए ब्ज्. ैबंद और च्म्ज्.ैबंद सारे टेस्ट की रिपोर्ट ठीक थी पर और च्म्ज्.ैबंद देखकर डॉक्टर ने कहा कि इनकी स्मजि व्अमतल पर एक सिस्ट हो रही है और कुछ कैंसर के कण भी आ रहे हैं, डॉक्टर ने कहा कि इनकी बच्चेदानी और एक स्मजि व्अमतल बची हुई है उसे भी हटाना पडेगा, मेरे तो जैसे हाथ-पांव में जान ही नहीं बची आँखों में आँसू भर गए। मैं कभी माँ ही नही बन पाऊँगी, डॉक्टर ने कहा कि कब ऑपरेशन करवाना है मेरा मन ऑपरेशन के लिए तैयार ही नहीं था। मैं यही सोचती अगर बच्चेदानी ही निकल जाएगी तो फिर मैं  कैसे जीऊँगी। ४-५ महीने सिर्फ सोचने में ही लगा दिए। इस दौरान मैंने जयपुर, जोधपुर हर जगह रिपोर्ट दिखाई। सभी डॉक्टरों ने यही कहा कि बच्चेदानी निकलवा दो और बाद में किमोथैरेपी ले लो, मम्मी-पापा, भाई सब परेशान थे। मेरी मम्मी चिंता करके हर किसी के सामने रोने लग जाती थी। फिर जब मम्मी ने जोधपुर में रह रहे गंगारामजी बैरवा से मेरी बीमारी के बारे में बात कही तो उन्होंने पूज्य गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग के बारे में बताया। केवल फोटो का ध्यान लगाने से ही सब कुछ ठीक हो जायेगा और उसे कुछ नहीं होगा। फिर मम्मी ने मुझसे फोन पर यह बात कही, पर मुझे विश्वास नहीं हुआ, मैंने मम्मी की बातों पर ध्यान नहीं दिया।
जब मैं रिपोर्ट लेकर दिल्ली के राजीव गांधी कैंसर अस्पताल में अपनी जेठानी के यहाँ रुकी हुई थी वहाँ पर कोटा से उनकी दीदी का फोन आया तो मेरी जेठानी ने अपनी दीदी को मेरे बारे में बताया तब उन्होंने भी मुझे पूज्य गुरु श्री रामलालजी सियाग के फोटो के ध्यान के बारे में बताया उन्होंने मुझसे भी बात की। आप बीकानेर चले जाओ वहाँ गुरुजी प्रत्येक गुरुवार को दीक्षा देते हैं। आप दीक्षा ले लो हर रोज सुबह शाम १५ मिनट का ध्यान करो। आपको कुछ नहीं होगा। आपकी बच्चेदानी और ओवरी नहीं निकलेगी। गुरुदेव सब ठीक करेंगे। बाद में मेरे भतीजे ने नेट द्वारा सर्च करके गुरुदेव की तस्वीर निकाल दी। मेरी जेठानी ने कहा डॉक्टर को तो दिखा ही चुकी, अब गुरु की शरण में जाकर भी देख लो वहाँ मैंने पहली बार ध्यान दिया, पर मन डॉक्टर की बातों पर घूम रहा था आँखों से आँसू निकल रहे थे। पता नहीं अब क्या होगा ? फिर मैं अपने पति के साथ उतरांचल चली गई। साथ में गुरुदेव की तस्वीर भी ले गई। वहाँ पर मैं दस बारह दिन रही। जब भी मन होता गुरुदेव की तस्वीर के आगे बैठ जाती। बस एक ही प्रार्थना करती गुरुदेव मुझे बचा लो। मेरी ओवरी व बच्चेदानी नहीं निकले वरना मैं कैसे जी पाऊँगी ? क्योंकि दूसरा ऑपरेशन तो होना ही था क्योंकि ’’मेरे पति फोटो के ध्यान से ठीक हो जायेगा गुरुदेव सब ठीक करेंगे इन सब बातों को नहीं मानते थे‘‘ लेकिन उन्होंने मुझसे कहा अगर तुम्हें कही भी दर्द होगा तो तुम वहीं सोचोगी कहीं मुझे उस वजह से तो दर्द नहीं हो रहा फिर मैंने सोचा मेरे पति मेरी वजह से पांच महीने से नौकरी से छुट्टी लेकर बैठे हैं मरे लिए इतना परेशान हो रहे हैं फिर मैंने ऑपरेशन के लिए हाँ कर दी क्योंकि शायद मेरा मन भी नहीं मानता। मैंने बाम्बे जाने से पहले अपने पति से कहा कि मैं बीकानेर जाना चाहती हूँ और गुरुजी से दीक्षा लेना चाहती हूँ तो उन्होंने कहा ठीक है बॉम्बे जाने से पहले मैं बीकानेर गई जिस दिन मैं पहुँची, उस दिन गुरुवार था।
 मैं गुरुजी के आश्रम गई और उनके गुरु भक्त को अपने बारे में बताया और कहा कि मुझे गुरुजी से मिलना है तब उन्होंने कहा वो तो अभी यहाँ नहीं है शाम तक आएंगे। शाम को दीक्षा कार्यक्रम है उन्होंने कहा पहले आपको दीक्षा लेनी होगी फिर अगले दिन आपकी गुरुजी से भेंट हो सकती है। मैंने सोचा अगर मैं दीक्षा ले लूँगी फिर भी अगर ऑपरेशन के दौरान मेरी बच्चेदानी और ऑवरी निकल गई तब मैं दीक्षा का पालन कैसे कर पाऊँगी?मैंने उन गुरु भक्त से पूज्य श्री गंगाईनाथजी की समाधि का पता पूछा फिर अपने पति के साथ जामसर में गुरु गंगाई नाथजी की समाधि के दर्शन के लिए चली गई। वहाँ पहुंचकर गुरुजी से प्रार्थना की मुझे ऑपरेशन तो करवाना ही है अगर ऑपरेशन के दौरान कोई चमत्कार हो गया तो गुरुजी मैं आपकी शरण में आ जाऊँगी। मैंने सात फेरी लगा ली। प्रार्थना कर बिना दीक्षा लिए बॉम्बे चली गई। डॉक्टर ने पूछा क्या निर्णय लिया, ऑपरेशन करवाना है या नहीं ? मैंने कहा हाँ करवाना है तो डाक्टर ने २६-१२-२००८ को ऑपरेशन की तिथि दी। मैंने खाट के ठीक सामने टेबल पर गुरुजी की तस्वीर रख दी, सुबह शाम जब भी ध्यान लगाने की कोशिश करती। मगर मन ही मन यही सोचती अब मेरा क्या होगा ? ऑपरेशन के बाद कैसे जी पाऊँगी ? मैं कभी माँ भी नहीं बन सकती, शादी को १ साल भी नहीं हुआ सब मुझे ताने मारेंगे पता नहीं शादी से पहले ही यह बीमारी थी आँखों में आँसू भर जाते, बस गुरुदेव आपसे यही प्रार्थना है मुझे बचालो ऑपरेशन के दौरान कोई चमत्कार दिखा दो। २६ दिसम्बर शुक्रवार को जब मुझे ऑपरेशन के लिए ऑपरेशन थियेटर में ले जा रहे थे तो मैंने गुरुजी की तस्वीर को देखकर मन ही मन प्रार्थना की।
गुरुजी अब मैं जा रही हूँ कोई चमत्कार दिखा दो तो मैं तुम्हारी शरण में आ जाऊँगी। मेरे लिए आप ही भगवान् हैं। मेरी लाज रखना, मैंने गुरुजी को प्रणाम किया। बाद में मुझे ऑपरेशन थियेटर में ले गये। ऑपरेशन होने के बाद जब मुझे ऑपरेशन थियेटर से आई.सी.यू. वार्ड में होश आया तो मेरे छोटे भाई ने कहा तेरे लिए खुश खबरी है, तेरी बच्चेदानी व ऑवरी बच गई। डॉक्टर को कहीं कुछ भी नहीं मिला। तब मैंने मन ही मन गुरुदेव को प्रणाम किया। और कहा अब मैं आपकी शरण में हूँ गुरुजी मैंने आपका चमत्कार देख लिया। मुझे अपनी शरण में ले लो। फिर मैं अपने सारे दुःख दर्द सब सहन कर गई। क्योंकि गुरुजी ने मुझे नया जीवन प्रदान किया। मेरे जीवन में खुशियाँ भर दी। डॉक्टर ने कहा ऑपरेशन के दौरान जितने भी टेस्ट हुए सब की रिपोर्ट सामान्य है। डॉक्टर ने कहा अभी हमें कहीं भी कैंसर के लक्षण नहीं मिले। इसलिए हमने तुम्हारी बच्चेदानी व ऑवरी का ऑपरेशन नहीं किया है। १ जनवरी २००९ को मुझे छुट्टी दे दी। बाद में डॉक्टर को टेस्ट करवाने गए तो उन्होंने कहा अब किमोथैरेपी ले लो जो ऑपरेशन के १५ दिन बाद शुरू हो जाती है डॉक्टर से पूछा इससे ऑवरी और बच्चेदानी पर तो कोई नुकसान नहीं पडेगा तो डॉक्टर ने कहा ९० प्रतिशत संभावना है खराब होने के, मेरे पति ने पूछा कि किमो लेना जरूरी है तो डॉक्टर ने कहा अभी सब कुछ ठीक है हमने ऑपरेशन से पहले जितने भी टेस्ट करवाएं थे। जाँच कराकर देखा सभी कुछ नॉर्मल है लेकिन अगर जोधपुर वाली रिपोर्ट देखें तो उसके आधार पर कीमो लेना चाहिए मेरे पति ने कहा डॉक्टर साहब हमें आपकी राय चाहिए। दूसरा ऑपरेशन आपने किया है तब डॉक्टर ने कहा ठीक है तीन महीने बाद आप इनको टेस्ट करवाने लाइए हम इनका ठसववक ज्मेज - ब्ण्ज्ण् ैबंद करेंगे उसके बाद कुछ कहेंगे। शायद डाक्टर भी कुछ समझ ही नहीं पाएं थे। २२ अप्रेल २००९ की तारीख दी।
उससे पहले मैं विश्राम के लिए मम्मी के पास जोधपुर आ गई फिर मैं और मम्मी हम दोनों गुरुजी की तस्वीर का ध्यान करते, मन ही मन गुरुजी को कोटि-कोटि धन्यवाद देते। गुरुजी ने इतना बडा चमत्कार दिखा दिया। मुझे नया जीवन प्रदान किया। मैंने और मम्मी ने २ अप्रेल २००९ को बाडमेर जाकर गुरुजी के शक्तिपात दीक्षा कार्यक्रम में भाग लेकर दीक्षा ले ली उनके द्वारा दिए गए मंत्र का जाप व तस्वीर का ध्यान करना। अब गुरुदेव ही मेरी पूजा व विश्वास है। ५ अप्रेल को जब गुरुजी जोधपुर आश्रम में आए तब मुझे व मम्मी को करीब से दर्शन व उनके चरण स्पर्श करने का मौका मिला मैंने गुरुजी को अपनी बिमारी के बारे में बताया और जो चमत्कार हुआ, बताया। गुरुजी ने पूछा दीक्षा कब ली तब मैंने कहा अभी बाडमेर में जब आपका दीक्षा कार्यक्रम था तब गुरुजी ने कहा अपने सारे टेस्ट की रिपोर्ट यहां आश्रम जमा करवाना मैंने कहा ठीक है गुरुजी से मैंने कहा अब मुझे दुबारा बॉम्बे टेस्ट करवाने जाना है बहुत डर लग रहा है तब गुरुजी ने कहा जब पहले कुछ नहीं मिला तो अब क्या मिलेगा। जब डॉक्टर को दिखाने गई तब गुरुदेव से मन ही मन प्रार्थना कर रही थी मुझे जल्दी से मुक्त करवा देना।  डाक्टर की राय पर ठसववक ज्मेज और ब्ण्ज्ण् ैबंद करवाया। ठसववक ज्मेज की रिपोर्ट नार्मल थी। ब्ण्ज्ण् ैबंद की रिपोर्ट में डनसजपचनजम स्विस्ट आई थी मैं इतना डर गई, रोने लग गई गुरुजी को याद करने लगी गुरुजी मुझे बचालो अब मेरे में दुबारा ऑपरेशन करवाने की हिम्मत नहीं है, जब हम डाक्टर को रिपोर्ट दिखाने गए तो डाक्टर ने रिपोर्ट देखकर ४ महीने बाद आकर दिखाने को कहा, दोनों रिपोर्ट नॉर्मल है मेरे पति ने डाक्टर से जब डनसजपचनसम के बारे में पूछा तो उन्होने कहा कुछ नहीं सब ठीक है तब मन ही मन गुरुजी को प्रणाम किया तथा यहीं प्रार्थना की कि गुरुदेव अब आप ही मेरी रक्षा करना।
- ज्योति वर्मा,
विजय नगर, भगत की कोठी, जोधपुर (राज)



About Guru Siyag



भारत के समकालीन संतों में से एक ८७ वर्षीय सद्गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग ने प्राचीन भारत की समृद्ध वैदिक आध्यात्मिक धरोधर में से योग की एक अद्वितीय पद्धति विश्व को प्रदान की है। जोधपुर की आध्यात्मिक संस्था अध्यात्म विज्ञान सत्संग केन्द्र (ए.वी.एस.के.) के संस्थापक एवं संरक्षक सद्गुरुदेव सियाग वर्तमान में भारत के उत्तरी-पश्चिमी रेगिस्तानी राज्य राजस्थान के बीकानेर जिले के निवासी हैं। १९८० के दशक के मध्य से ही सद्गुरुदेव सियाग एक विशुद्ध आध्यात्मिक मिशन की अगुवाई कर रहे हैं।
१९६८ में गुरुदेव को रहस्यमय आध्यात्मिक अनुभव हुए जो उन्हें दिव्य शक्तियों से आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त हुए। सद्गुरुदेव सियाग लाखों लोगों को शारीरिक एवं मानसिक संतापों से छुटकारा दिलाकर उन्हें स्वयं की खोज एवं ईश्वरानुभूति के मार्ग पर अग्रसर कर चुके हैं।
  आरम्भिक जीवन
सद्गुरुदेव सियाग का जन्म २४ नवम्बर १९२६ को बीकानेर के पूर्व में २५ कि.मी.दूर स्थित पलाना ग्राम के एक गरीब किसान परिवार में हुआ। सद्गुरुदेव का बचपन कठिन संघर्षों में  बीता, जब सद्गुरुदेव ढाई या तीन वर्ष
जीवन बदलने वाला अनुभव .....
श्री दुबेजी ने विधिवत अनुष्ठान प्रारम्भ करवाया। हवन कुण्ड में हर मंत्र के बाद स्वाहाके साथ देशी घी में मिली हवन सामग्री की आहुति देते थे तथा देशी घी का दीपक और अगरबती निरन्तर साथ जलते रहते थे।
इस प्रकार करीब तीन माह में सवा-लाख मंत्र का जप पूरा हुआ। जिस दिन पूर्ण आहुति दी, इसके अगले दिन क्योंकि जप नहीं करना था इसलिए गुरुदेव बिस्तर पर ही सोये रहे, परन्तु आदतवश प्रातः दो बजे ही आँख खुल गई।  आँखें बंद किये रजाई में लेटे हुए थे कि अचानक ध्यान लग गया। गुरुदेव ने बताया कि उनको उस समय तक कुछ भी मालूम नहीं था कि ध्यान क्या होता है? और गायत्री मंत्र का अर्थ क्या है? गुरुदेव को अपने अन्दर नाभि से लेकर कण्ठ तक एक अजीब प्रकार का सफेद प्रकाश दिखाई दिया। गुरुदेव विचार करने लगे कि दिखाई तो आँखों से देता है, लेकिन पेट में प्रकाश ही प्रकाश कैसे दिखाई दे रहा है? जब गुरुदेव ने  इस प्रकाश पर ध्यान केन्दि्रत किया तो उसमें भँवरें की गुंजन जैसी आवाज सुनाई दी। गुरुदेव ने सोचा कि आवाज का यंत्र तो कण्ठ में है लेकिन मेरे पेट में भँवरे की गुजन की आवाज कैसे सुनाई दे रही है। जब मैंने आवाज पर ध्यान केन्दि्रत किया तो पाया कि नाभि में से गायत्री मंत्रो की आवाज निरन्तर निकल रही है। उसी की गूंज मुझे भंवरे की गूंजन के समान सुनाई दे रही है।‘‘ गुरुदेव उस प्रकाश और आवाज को अपने अन्दर काफी देर तक देखते सुनते रहे। उस समय करीब प्रातः पांच बजे का समय हो गया था। इस समय पानी की सप्लाई होती थी। घर के स्नानघर का नल बच्चों ने खुला छोड दिया था इसलिए हवा के साथ पानी की जब तेज आवाज हुई तो उसके कारण उनका ध्यान भंग हो गया। फिर आँखें बन्द करके देखने सुनने का कई बार प्रयास किया परन्तु कोई सफलता नही मिली। इसके बाद उनका स्वास्थ्य पूर्णरूप से ठीक हो गया।
गुरुदेव कहते है कि आज मैं अच्छी प्रकार से समझ रहा हूँ कि मेरे में जो आश्चर्य जनक परिवर्तन आया है उसमें मंत्र का प्रभाव तो है ही परन्तु विशेष प्रभाव उनकी एकाग्रता का था। सवालाख मंत्रो के अनुष्ठान के दौरान गुरुदेव का मन पूर्ण शान्त रहा किसी प्रकार के भाव उनके मन में पैदा नहीं हुए जैसे एक तरफ मौत खडी हो और दूसरी तरफ साधक प्राणरक्षा की निरन्तर प्रार्थना उस परम सत्ता से करें, वैसी ही स्थिति गुरुदेव की रही। गुरुदेव कहते है कि मैंने सवालाख मंत्रों का जप किया लेकिन मेरे में जो परिवर्तन आया है वो मेरी एकाग्रता के कारण आया हैं।

उपरोक्त आराधना के बाद गुरुदेव पूर्ण रूप से सात्विक हो गये। यहाँ तक कि गुरुदेव बीडी और सिगरेट के धुंए तक को सहन नहीं कर सकते थे। गुरुदेव को इस बात से आश्चर्य हुआ कि मंत्र से ऐसा परिवर्तन आ सकता है इसकी कल्पना भी नहीं थी। इस आश्चर्य जनक परिवर्तन के कारण उनको धार्मिक पुस्तकें पढने की इच्छा हुई। देवयोग से स्वामी श्री विवेकानन्दजी की ही पुस्तके पढने को मिली। स्वामी जी ने बार बार जोर दिया दिया है कि अध्यात्म जगत् में बिना सद्गुरु से दीक्षा प्राप्त किये कोई सफलता मिलनी असंभव है। इसलिए गुरुदेव को भी गुरु बनाने की प्रबल इच्छा हुई। देवयोग से बीकानेर से उत्तर की ओर पंजाब की तरफ जो रेल्वे लाईन जाती है उस पर जामसर नामक रेलवे स्टेशन है। यह बीकानेर से करीब २७ किलोमीटर दूरी पर स्थित है। जहां एक रेतीले धोरे पर गुरुदेव सियाग के मुक्तिदाता संत सद्गुरुदेव बाबा श्री गंगाईनाथजी योगी (ब्रह्मलीन) गहन तपस्या में लीन रहते थे। उनसे दीक्षा लेने से उनकी काया पलट गई। दीक्षा लेने के करीब आठ माह बाद ही ३१.१२.१९८३ की क्रूर रात्रि ने उन महान् आत्मा को उनके हजारो शिष्यों से छीन लिया। उनमें गुरुदेव भी एक थे। भौतिक पिता सवा दो साल की उम्र में ही छोड कर चले गये और आध्यात्मिक पिता भी आठ माह की उम्र में अनाथ कर गये। गुरुदेव ने बताया कि इस प्रकार उनका सम्पूर्ण जीवन विश्व रूपी अनाथालय में ही बीत रहा है। बाबा श्री गंगाई नाथजी के ब्रह्मलीन होने से उनकी तबीयत पहले की ही तरह खराब हो गई। कई दार्शनिक सज्जनों ने सलाह दी कि यह स्थिति किसी आध्यात्मिक शक्ति के कारण ही है। अतः गुरुदेव ने इसके लिए बाबा जी की समाधि पर पूजा अर्चना की, तो वे उसी समय पूर्ण स्वस्थ हो गये। परन्तु इसके साथ ही बाबाजी  का आदेश मिला कि ’’मैंने तुझे जो प्रसाद दिया है उसे मानव कल्याण के लिए सम्पूर्ण विश्व में बांट।‘‘ गुरुदेव ने अपने सद्गुरुदेव बाबा श्री गंगाई नाथ जी के आदेश को मानते हुए ३०.०६.१९८६ से रेल सेवा से ६ साल ६ माह पहले स्वेच्छा से सेवानिवृत लेकर  इस प्रसाद को बांट रहे हैं।
        गायत्री का दिव्य प्रकाश, गुरुदेव के लिये नई खोज लेकर आया। उन्होंने महसूस किया कि भौतिक जगत् में अपने अस्तित्व एवं जीवन के बाहरी भाग के पीछे एक उच्चत्तर सत्ता है। वह न तो अपनी भौतिक सीमाओं मे बंधे हैं और न ही उनकी व्यक्तिगत जागरूकता, भौतिक जगत् जिसमें वह रहते है, उससे बंधी हुई है। उन्होंने महसूस किया कि उनकी व्यक्तिगत सत्ता इतनी ज्यादा विस्तृत हो गई है कि समस्त ब्रह्माण्ड को अपने आलिंगन में ले सकते है एवं वह समस्त विश्व है और जो भी सजीव एवं निर्जीव सत्ता इसमें निवास कर रही है वह उनकी अपनी है एवं वह उनका कम्पन महसूस कर सकते थे। अपने अपूर्व अनुभव द्वारा  उन्होंने यह भी महसूस किया कि वास्तव में वे ’’वही‘‘ है जो वेदों में ब्रह्म वाक्य है-’’तत्तवमसि‘‘(तूं वही है) जैसा कि प्राचीन वैदिक संतो ने सर्वव्यापक, अपरिवर्तनशील निराकार ईश्वरीय शक्ति ’’ब्रह्म‘‘  को कहा है।

पुराने और नये जीवन के बीच संघर्ष.......

अचानक सांसारिक भौतिक जगत् में पीछे लौटना गुरुदेव को बहुत ही अरूचिकर लग रहा था। उन्होंने महसूस किया जैसे उनका विशाल अस्तित्व शुद्र अवस्था में समेटकर एक अपरिचित एवं विपरीत जगत् के अंदर अविकसित अस्तित्व में दबा दिया गया है। गुरुदेव ने साधना के पश्चात् जो अद्भुत दृश्य अनुभव किया था उसके बारे में बाद में वह बहुत दिनों तक विस्तार से सोचते रहे। वह यह विश्वास नहीं कर सकते थे कि कोई बिना आंतरिक अंगों के रह सकता था, और फिर भी उन्होंने दृश्य के दौरान जो अनुभव किया था, वह इतना वास्तविक था कि उसे मतिभ्रम कहकर खारिज नहीं किया जा सकता था। वर्षों बाद उन्होंने जाना कि मैंने जो अनुभव किया था वह, भविष्य की आकृति थी, जब आज की स्थूल अवस्था से मानव शरीर बहुत हल्का एवं चमकीला होगा। उन्होंने अद्भुत भविष्य अनुभव किया जो मानव सभ्यता की प्रतीक्षा कर रहा है।
गुरुदेव के लिये, शीघ्र ही, यह मानना आनंददायक रहा कि गायत्री की उपासना ने उन्हें मौत के उस डर से मुक्त कर दिया जो उनमें  पहले जडें जमाये था। उन्होंने यह भी माना कि भौतिक कठिनाइयाँ, जो अब तक स्थायी रूप  से लगातार आ रही थी,  वह अब समय के साथ  आसान होनी आरम्भ हो गयी हैं, लेकिन उन पर  शीघ्र ही यह प्रकट हो गया कि जीवन अब पहले जैसा नहीं रहा है। जीवन की सांसारिक वास्तविकताओं जैसे खाना, सोना, काम करना तथा  पारिवारिक कर्तव्यों के निर्वहन आदि में उन्हें अब वह गहरी दिलचस्पी नहीं रही जो साधना की घटना से पहले रहा करती थी। उन्होंने एक परिवर्तन और देखा, यद्यपि वह झूठ पहले से ही नहीं बोलते थे लेकिन अब सच बोलने की मांग प्रबलता से महसूस होने लगी थी, चाहे यह उनके आसपास रहने वालों को रूचिकर लगे या नहंीं, इससे कोई अन्तर नहीं पडता था।
उनकी सच्चाई के कारण उनके कार्यालय के साथियों ने गुरुदेव को रेलवे के स्थानीय कर्मचारी संघ का नेता चुन लिया। संघ के मुद्दों पर विचार करते वक्त जो उन्ह सही लगता था उस पर उनका गैर समझौतावादी रुख साथी-कर्मचारियों को पसंद आया, लेकिन संघ की कार्यकारिणी के अनेक साथियों व प्रबन्धकों को वह व्यथित कर रहा था।
यूनियन के भ्रष्ट अधिकारी एवं प्रबन्धक जो अक्सर कर्मचारियों के हितों के विरूद्ध उनका वाजिब हक न देने तथा उन्हें उनके अधिकारों से वंचित करने के लिये कपटपूर्ण चालें चलते थे, उसमें गुरुदेव का सहयोग न मिलने से उन्हें कठिनाई होती थी। इससे कार्यालय में शत्रुता  पैदा होने लगी तथा जीवन के लिये संघर्ष और भी कठिन हो गया। वह अपने परिवार के साथ रेलवे केम्पस में छोटे से एक कमरे वाले घर में रहते थे। गर्मियों में जब तापक्रम ४५ डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक हो जाता था तब उनके तथा उनके परिवार के सदस्यों के लिये जीना असहनीय हो जाता था क्योंकि उनमें अपने कमरे को ठंडा रखने के लिये एक सीलिंग फेन क्रय करने की भी  क्षमता नहीं थी। वरिष्ठता के आधार पर कुछ खास दर्जे के कर्मचारियों को रेल्वे विभाग सीलिंग फेन उपलब्ध कराता था। गुरुदेव इस लाभ को पाने के अधिकारी नहीं थे। अधिकारियों ने उन्हें उसूलो से समझौता करने की शर्त पर बिना बारी आये यह सुविधा उपलब्ध कराने का इशारा किया लेकिन उन्होंने एकदम से उन्हें इसके लिये मना कर दिया ।


स्वयं की तलाश........

इसके कुछ महीनों बाद गुरुदेव बहुत अशान्त हो गये। भौतिक जीवन से उनकी दिलचस्पी खत्म हो गयी। उनकी ईश्वर में जो यदाकदा आस्था थी,  धीरे धीरे वह दृढ विश्वास में बदल गयी। अब वह अपना अधिकांश समय ईश्वर आराधना तथा ध्यान करने में व्यतीत करते थे। वह जैसे ही अन्तर्मुखी हुए, वह जीवन के बारे में ही आश्चर्य करने लगे। मन में अनेक प्रश्न उठने लगे-ः ’’वास्तव में, मैं कौन हूँ? मैं यहाँ क्यों  हूँ? मै कहां जा रहा हूँ? ’’ यह उन्हे रात - दिन लगातार सताने लगे। जब उन्होंने गायत्री की साधना के बाद आये अपने इस नजरिये में बदलाव बाबत् पवित्र पुराणों के पारगंत, कुछ पण्डितों से परामर्श किया तो उन्हें बतलाया गया कि वास्तव में उन्हें देवी की सिद्धि प्राप्त हुई है। उन्होंने उन्हें भौतिक जीवन म निरन्तर आ रही कठिनाइयों को दूर करने के लिये उस शक्ति का प्रयोग करने का परामर्श दिया।
गुरुदेव ने उनकी राय पर ध्यान देने से शालीनतापूर्वक मना कर दिया। उन्हें विश्वास था कि ईश्वर ने उनके जीवन में परिवर्तन कर उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर इसलिये नही डाला है  कि इससे वह पैसा कमा सकें और सुखद भौतिक जीवन जियें। अगर ईश्वर ने उन्हें ईश्वरीय पथ पर बढाया है तो गुरुदेव ने माना कि उसने ऐसा किसी खास उद्देश्य से किया है और वह आगे भी रास्ता दिखाएगा। २०वीं शताब्दी की महानतम् हस्तियों में एक स्वामी विवेकानन्द जिन्होंने न सिर्फ भारत बल्कि अमेरिका तथा यूरोप में हिन्दू आध्यात्मिक विरासत का उद्धार किया। उनके द्वारा प्रतिपादित दर्शन पर गुरुदेव आगामी कुछ माह में आध्यात्मिक अनुसरण के दौरान आ पहुँचे। वैदिक सिद्धान्त जो सार्वभौमिक रूप से लागू होते हैं, उनके द्वारा मानवता के प्रायोगिक रूपान्तरण पर स्वामी जी के जोर ने गुरुदेव को प्रभावित किया। गुरु-शिष्य परम्परा को पुनर्जीवित कर उससे वैदिक दर्शन पर चलने की विवेकानन्द जी पुरजोर वकालत करते थे। उनका विश्वास था कि केवल यही मार्ग समस्त विश्व में  आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकता था।
 बाबा श्री गंगाईनाथ जी से मुलाकात...

स्वामी विवेकानन्द की राय पर ध्यान देते हुए गुरुदेव ने पूर्ण तत्परता के साथ गुरु की तलाश आरम्भ की। जब उन्हें एक भी न मिल सका तो उन्होंने निराशा महसूस की। उन्हें ध्यान के दौरान जामसर (एक छोटा सा गाँव जो बीकानेर से २७ कि.मी. दूर है) में स्थित आश्रम को देखने की उत्कट इच्छा हुई, जिसे उन्होंने नजर अंदाज कर दिया, फिर भी उन्होंने महसूस किया कि आन्तरिक माँग बलवती हो उठी है। अप्रैल १९८३ में वह आश्रम गये वहाँ शिव अवतारी कृपालु दृष्टि वाले प्रमुख सन्यांसी महातपेश्वर बाबा श्री गंगाईनाथ जी से उनकी भेंट हुई।
प्रत्यक्ष रूप से उनकी मुलाकात के बारे में विशेष कुछ नहीं था। आश्रम छोडने के बाद भी बाबा की कृपालु निर्निमेष दृष्टि गुरुदेव के साथ बनी रही एवं कुछ दिनों बाद उन्हें बाबा का पवित्र स्थान देखने की पुनः इच्छा हुई। अप्रैल १९८३  में बाबा से यह उनकी दूसरी मुलाकात थी। जब गुरुदेव झुके तथा बाबा के चरणस्पर्श किये तब बाबा ने गुरुदेव के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया । जिस क्षण बाबा ने गुरुदेव को स्पर्श किया उन्होंने विद्युत गुजरने जैसी अत्यधिक तीव्र तरंगे शरीर में महसूस की। सिद्धयोग की अद्वितीय विधि द्वारा यह बाबा का गुरुदेव को दीक्षित करने का तरीका था। गुरुदेव शीघ्र ही आश्रम से वापस लौट आये, कुछ भी शब्दों का आदान-प्रदान नहीं हुआ। तब गुरुदेव ने थोडा माना कि उन्हें जिस गुरु की तलाश थी ठीक वह मिल चुका था, तथा उनका जीवन एकबार फिर से बदल चुका था।

विचित्र घटनायें..........

मई-जून १९८३ तक उन्होंने मानसिक व्यवधान और भी अधिक बढा हुआ महसूस किया। यह स्थिति आश्रम जाने के बाद भी लगातार बनी रही। अगस्त १९८३ के अन्त में अवस्था इतनी ज्यादा खराब हो गई कि गुरुदेव कार्यालय में जाकर कार्य नहीं कर सके, और उन्होंने बिना कोई छुट्टी का प्रार्थना-पत्र दिये, ड्यूटी पर जाना बन्द कर दिया। ३१ दिसम्बर १९८३ की सुबह ५ बजे एक बडा झटका लगा। तेज भूकम्प से समूचा उत्तरी-पश्चिमी भारत हिल गया, पृथ्वी हिली उसके कुछ सैकण्ड पहले उस सुबह प्रातः ही एक अज्ञात धक्के से गुरुदेव गहरी नींद से झटके के साथ उठ गये थे। गुरुदेव ने बाद में जाना कि निश्चित् रूप से उस क्षण बाबा श्री गंगाईनाथ जी ब्रह्मलीन हुए थे।
बाबा के ब्रह्मलीन होने का, गुरुदेव पर बाह्य रूप से कोई प्रभाव नहीं पडा, यद्यपि उन्हने बाद में जाना कि बाबा की मौत ने वर्षों पूर्व पिताजी की मौत के बाद, एक बार पुनः उन्हे अनाथ बना दिया था। फिर शीघ्र ही, बाद में बाबा की समाधि पर जाने की एक अज्ञात आन्तरिक माँग उन्हें महसूस हुई, जिसे उन्होंने दिमागी चाल समझकर स्थगित कर दिया। गुरुदेव का व्यवहार असाधारण हो गया। जब वह कार्य से लगातार अलग थे, तब भी आन्तरिक परेशानियाँ उन पर प्रबल वेग से प्रहार कर रही थी। वह अपने पैत्रिक गाँव पलाना वापस लौटे, जहाँ पत्नी और बच्चों की परवरिश कैसे करें? यह चिन्ता उन्हें रात-दिन सताती रहती थी। क्या करें और क्या न करें?

एक बार वह गर्मियों में शाम के समय सडक पर टहल रहे थे, पेड के नीचे बैठे, एक स्थानीय युवक ने उन्हें बुलाया। उसने गुरुदेव से जो कहा वह उन्हें बहुत विचित्र लगा। युवक ने कहा, कि सपने में आकर बाबा श्री गंगाईनाथ जी उसे कहते है कि तेरी होटल पर जो बाबूजी आते है तूं उसको कह कि वे जामसर जाएं उनको जो परेशानी हो रही है उसका यही कारण हैं।  जब गुरुदेव ने युवक से कहा कि बाबा अब जीवित नहीं है, इसलिये उसे बाबा कैसे मिल सकते है? तो युवक ने कहा कि वह संत उसके स्वप्न में  आकर उसे आदेश देते है। इसे ईश्वरीय बुलावा समझकर गुरुदेव बाबा की समाधि पर गये तथा वहाँ प्रार्थना की।

हिन्दू विचारधारा में एक प्रमुख नियम है कि आत्मा अमर है। जब एक व्यक्ति गुजर जाता है तो उसका शरीर मरता है आत्मा नहीं। यह भी विश्वास किया जाता है कि एक आध्यात्मिक गुरु या एक संत अपना नश्वर शरीर त्यागने के बाद भी अपने शिष्यों को निर्देशित करना जारी रखता है। इसलिये ईश्वरीय आशीषों के झरने के रूप में एक संत की समाधि पूजनीय होती है। गुरुदेव ने थोडे आश्चर्य के साथ महसूस किया कि बाबा की समाधि के दर्शन के बाद चिन्ता के काले बादल धीरे धीरे छंट रहे थे।

बाबा की दूसरी दुनियाँ से सन्देश.........
जैसे-जैसे उनका ध्यान प्रबल हुआ, गुरुदेव ने बाबा से आन्तरिक संदेश प्राप्त करने आरम्भ कर दिये। बिना किसी शंका के गुरुदेव को जल्दी ही स्पष्ट हो गया कि बाबा श्री गंगाईनाथ जी ही वह गुरु थे जिनकी उन्हें तलाश थी। गुरुदेव ने यह भी माना कि नश्वर शरीर छोडने के बावजूद, बिना किसी बाधा के, प्रबल शक्ति के साथ बाबा उन्हें आध्यात्मिक मार्ग दिखला रहे थे। आन्तरिक संदेश प्राप्त करने का तरीका उस अनुभव से भिन्न था, जिससे गुरुदेव अन्य व्यक्ति से सम्फ करने के लिये किया करते थे। किन्हीं शब्दों का आदान प्रदान नहीं होता था जैसे पौराणिक कहानियों या फिल्मों में ईश्वरीय सम्फ को नेता के भाषण के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। एक बिल्कुल स्पष्ट विचार बिना किसी प्रयास या आकांक्षा के साधारण तरीके से गुरुदेव के दिमाग से, सुस्पष्ट रूप से उन्हें यह बताते हुए गजरता कि उन्हें समझने के लिये क्या आवश्यक है? या उन परिस्थितियों में क्या करना है? यह प्रकाश की एक किरण की तरह था जो गहरे पानी में से एक छोटी लहर की तरह से सतह की ओर बढते हुए आगे का मार्ग प्रकाशित करती है।
बाबा ने शीघ्र ही गुरुदेव को यह एहसास करा दिया कि वह पूर्व निर्धारित सांसारिक जीवन व्यतीत करने के लिये नहीं है। गहरे ध्यान के दौरान असंख्य अवसरों पर उन्हें भान हो गया कि गुरुदेव को सम्पूर्ण मानवता के रूपान्तरण के लिये धार्मिक क्रान्ति की अगुआई करने की व्यवस्था करनी है। गुरुदेव का स्वयं का जो रूपान्तरण हो रहा था उसका अभिप्राय वास्तव में उन्हें आगे आने वाले दुःसाध्य कार्य के लिये तैयार करना था। २० वीं शताब्दी के भारत के महानतम धार्मिक गुरुओं में से एक श्री अरविन्द की शिक्षाओं द्वारा वर्षों बाद गुरुदेव को सीखना था कि एक व्यक्ति में दिव्य रूपान्तरण अन्ततः समस्त मानवता में दिव्य रूपान्तरण का उद्घोषक होगा, क्योंकि वह ज्ञान प्राप्त व्यक्ति दूसरों को मार्ग दिखलाएगा। गुरुदेव को स्पष्ट शब्दों में बतला दिया गया था कि वह ही एक मात्र इस मिशन के लिये चुने गये है। यद्यपि उनकी स्वयं की चेतना की सरलता तथा परिस्थितिजन्य प्रयास जो उन्होंने स्वयं के अन्दर पाये, उन्होंने इस ईश्वरीय भविष्यावाणी पर  विश्वास करना उनके लिये अधिक कठिन बना दिया था।

पैगम्बर से सम्बन्धित दृश्य....

यह १९८४ की पीडा भरे दिनों की बात है, जब गुरुदेव को एक अन्य घटना से गुजरना पडा, जिसकी झंझट आगे आने वाले वर्षों में मानवता को प्रभावित कर सकती थी। एक रात जब वह सोने चले गये, उन्होंने स्वप्न में एक दृश्य देखा। दृश्य में उन्हें पुस्तक का एक अंश दिखलाया गया जिन्हे वे संदेह के साथ जान सके कि वह किसी पवित्र पुस्तक का हो सकता था, एक अनुकूल कहावत के शब्दों के साथ ’’तूं वही हैं, तूं वही हैं‘‘(तत्त्वमसि)। अगली सुबह गुरुदेव ने उस अज्ञात दृश्य के बारे में विस्तार से सोचा तथा यह जानने का प्रयास किया कि उन्होंने जो कुछ स्वप्न में देखा था, क्या वह दृश्य था या सिर्फ एक अज्ञात स्वप्न! गुरुदेव को स्वप्न में सुनाई पडे वचनों पर चिंतन करते रहे लेकिन वे उन शब्दों का अर्थ समझ  सके, क्योंकि ’’तू वही है‘‘ जो पहले उन्होंने कभी नहीं सुना था। क्योंकि पुस्तक का वह अंश हिन्दी में था, गुरुदेव उस अंश के कुछ ही शब्दों को वापस याद कर सके लेकिन उनके लिये इसका कोई अर्थ नहीं था।

कुछ दिनों के पश्चात् गुरुदेव के छोटे पुत्र राजेन्द्र जब विद्यालय से घर आ रहे थे तो सडक के किनारे एक मोची की दुकान पर उन्होंने एक फटी पुरानी पुस्तक, जिसके कोने मुडे हुए थे, यूँ ही पडी देखी तो उन्हें उस पुस्तक को लेने की अज्ञात आकांक्षा महसूस हुई और वह उसे ले आये, जिसे बाद में उन्होंने गुरुदेव को दे दिया। बिना किसी खास रूचि के जैसे ही गुरुदेव ने उस पुस्तक के पन्नों को पलटा, वह एक झटके से सावधान हो गए, जब उन्होंने उसके एक पृष्ठ पर वह अंश देखा, जो उन्हें स्वप्न में दिखाया गया था। उन्होंने वह पुस्तक पढी, कुछ दिनों बाद सिर्फ इतना समझ सके कि वह पुस्तक बच्चों के लिये थी, जिसमें साधारण शब्दों में चित्रों द्वारा ईसाई धर्म को समझाया गया था। स्वयं बहुत ज्यादा धार्मिक न होने के कारण गुरुदेव हिन्दू वेदों के बारे में भी ज्यादा नही जानते थे। अन्य धर्मों के दर्शन के बारे में तो और भी कम जानकारी रखते थे।
यद्यपि वह स्वप्न उनके लिए पहेली बना रहा। गुरुदेव ने महसूस किया कि एक नये तरह की शान्ति आनी आरम्भ हो गई है। वह पलाना से बीकानेर लौटे, जहाँ पर वे  मानसिक द्वन्द्व क दौरान शरण ले चुके थे। वापस काम पर लौटे तथा कार्यालय में सामान्य तरीके से कार्य करने लगे। आश्चर्यजनक  रूप से, किसी ने भी उनके अनधिकृत रूप से लम्बे समय तक कार्य से अनुपस्थित रहने पर भी कोई गम्भीर आपत्ति नहीं की, जो सामान्यतः उन्होंने अपना कार्य कभी छोडा ही नहीं था। दो वर्ष बाद उन्होंने पहली बार गुरु  श्री गंगाईनाथ जी की समाधि पर जाकर प्रार्थना की।
एक बार फिर बीकानेर में गुरुदेव ने आसपास के सामाजिक लोगों से पूछा कि क्या ईसाई धर्म में कोई पवित्र ग्रन्थ होता है जैसे हिन्दुओं में भगवद्गीता होती हैं? तब उन्हें बाइबल के बारे में पता चला। उन्हें बतलाया गया कि किताब के जो अंश उन्होंने दृश्य में दखे थे वह पवित्र पुस्तक है तथा वह अंश सेन्ट जॉहन द्वारा लिखित बाइबल में ईसा मसीह के सुसमाचार का एक हिस्सा है और स्वप्न में जो उन्होंने देखा था, वह अध्याय १५ः२६-२७ तथा १६ः७-१५ थे। बाद में एक मित्र ने, जिसने पवित्र पुस्तक बाइबल के बारे में स्वयं परिचय प्राप्त करने हेतु एक लघु कोर्स किया था, उसने गुरुदेव को छोटी किताब के आकार का एक हिन्दी संस्करण भेंट किया। उस छोटी पुस्तक को पढने से गुरुदेव ने सोचा कि बाइबल का और आगे अनुसरण करना असंगत है और उस विषय में रूचि समाप्त कर दी।

पुनः नवीन आग्रह के साथ आन्तरिक संदेश व आवाज शीघ्र ही वापस लौटी, गुरुदेव से मूल अंग्रेजी में बाइबल को पढने की बार बार माँग हुई। एक मित्र जो स्थानीय लॉ कॉलेज में व्याख्याता था, उससे बाइबल की एक प्रति उधार ली। अंग्रेजी की बाइबल पढना कोई मददगार साबित नही हुआ, पुस्तक का वह अंश जो उन्होंने स्वप्न में देखा था, किताब में नहीं मिला। अतः गुरुदेव ने किताब वापस लौटा दी तथा इस विषय को यह सोचते हुए एक बार फिर छोड दिया कि भयावह कथा का यह अन्त था, लेकिन वह नहीं होना था। आन्तरिक आग्रह अब और अधिक तीव्रता के साथ लौटा। एक बार पुनः पूछताछ करने पर जो जानकारी मिली उससे वह आश्चर्यचकित हुए। ईसाइयत बहुत से भागों में बंटी हुई थी, उनमें से दो मुख्य कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेन्ट है, जबकि जो बाइबल उन्होंने पहले पढी थी वह कैथोलिक की थी तथा प्रोटेस्टेन्ट द्वारा जो अपनाई गई है वह सेन्ट जॉहन द्वारा लिखित है तथा जो अंश उन्होंने स्वप्न में देखे थे, वह उस पुस्तक के थे।
 बाबा के आशीर्वाद से, गुरुदेव ने प्रोटेस्टेन्ट बाइबल की एक प्रति का प्रबन्ध कर लिया तथा ईसामसीह के सुसमाचारों में से उन्होंने  उस भाग को पढा, जिसके लिए लगातार उन्हें प्रेरित किया जा रहा था। ईसामसीह के समाचारों में से सम्बन्धित भाग में एक भविष्यवाणी की गई थी, वह और किसी ने नहीं, स्वयं ईसामसीह ने की थी, जो आनन्ददायक महत्वपूर्ण व्यक्ति के आगमन के बारे में थी। उनके भविष्यवाणी की हुई थी कि वह खास मृत्यु से सिर्फ वफादारों की रक्षा करेगा, और शेष मानवता को २१ वीं शताब्दी में अकाल तथा युद्ध से उत्पन्न आपदा में ईश्वरीय भयानक प्रतिकार का सामना करना होगा। गुरुदेव को बाद में मालुम हुआ कि बाइबल के प्रथम भाग ओल्ड टेस्टामेंट ( पुराना वसीयतनामा) जिसे यहूदी लोग अपनाते है, उसमें भविष्यवक्ता मलाकी द्वारा आनन्दमय महत्वपूर्ण व्यक्ति जिसे वह एलिय्याह  कहते है, के आगमन बाबत् एक ऐसी ही भविष्याणी की गई है। ईसाई तथा यहूदी दोनों द्वारा अपनाई जाने वाली पवित्र पुस्तक की भविष्यवाणियों को पढने के बाद गुरुदेव ने माना कि ईसाइयत तथा जुडाइज्म (यहूदी धर्म) दोनों से हजारों वर्ष पूर्व भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा गीता में दिये गये आदेशों से वह किसी न किसी प्रकार जुडी हैं।

सिद्धगुरु का पद ग्रहण करना

कम्फोर्टर (अवतार) को क्या करना है? इस बारे में भविष्यवाणियों को आगे पढते हुए गुरुदेव सहमत हुए कि किसी भी तरह इन भविष्यवाणियों को अमल में लाने हेतु उन्हें आन्तरिक योग (जिसे वह नवरात्रि की साधना के बाद वाली घटना से गहरे ध्यान के दौरान सीख रहे थे) द्वारा पार्ट अदा करना था।
जब से बीकानेर लौटकर कार्यालय का कार्य शुरू किया, गहरे ध्यान के दौरान गुरुदेव ने बाबा से आदेश प्राप्त किये कि उन्हें नौकरी छोड देनी चाहिए तथा उन्हें अपने आपको पूर्ण रूप से उस आध्यात्मिक मिशन को समर्पित कर देना चाहिए जो उन्हें सुपुर्द किया गया है। अतः बाब के आग्रह पर गुरुदेव ने सेवानिवृत्ति की उम्र से लगभग ७ वर्ष पूर्व ऐच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। गुरुदेव ने बाद में टिप्पणी की ’’मैं पहले रेलवे की नौकरी करता था, अब मैं अपने गुरु की नौकरी करता हूँ  यह जीवनभर की नौकरी है, जिसे मैं कभी नहीं छोड सकता। मैंने अपने परिवार की भौतिक आवश्यकताओं की चिन्ता पूर्ण रूप से उन पर छोड दी है। मैं अपने गुरु का वफादार नौकर हूँ, जो कुछ भी हो, मैं इस मिशन में प्राप्त करूँ अथवा खोऊँ, वह उनकी इच्छानुसार ही होगा‘‘
             बाबा ने उन्हे गुरुपद प्रदान किया तथा अपने शिष्य के रूप में अन्य लोगों को सिद्धयोग की दीक्षा देने के लिए उन्हें निर्देश दिये। गुरुदेव ने आरम्भ में जोधपुर में तथा राजस्थान के कुछ अन्य शहरों में दीक्षा कार्यक्रमों के द्वारा लोगो को सिद्धयोग की दीक्षा देनी आरम्भ की। जो गुरुदेव के पास आये और उनके शिष्य बन गये, उन्होंने अपने जीवन में एक आश्चर्यजनक धनात्मक परिवर्तन महसूस किया, उनकी बीमारियाँ/ पुरानी व्याधियाँ ठीक हो गई तथा  इन कार्यक्रमों में गुरुदेव के द्वारा दिये गये ईश्वरीय मंत्र के जाप तथा ध्यान से उन्होंने आध्यात्मिक जागरूकता महसूस की। गुरुदेव के अद्वितीय सिद्धयोग तथा आरोग्यकर शक्तियों की बात चारों ओर तेजी से फैली। गुरुदेव को अन्य शहरों तथा कस्बों में दीक्षा कार्यक्रम सम्पन्न करने हेतु आमंत्रित किया गया। गुरुदेव के आशीर्वाद प्राप्त करने में लोगो के साथ जाति, रंग, लिंग व धर्म आदि का कोई भेदभाव नही किया गया। तब से गुरुदेव ने भारत के विभिन्न शहरों की यात्रा कर लाखों लोगों को आध्यात्मिक विकास एवं अच्छे स्वास्थ्य के रास्ते पर डाला है।