Monday, 18 March 2013

Cure from haemophilia

Self statement of family members of a patient cured of Haeomophilia



हम श्रीमती सुनीता व घनश्याम चौधरी बताते है कि हमारा बेटा हेमन्त जो अभी ११) वर्ष का है। इसके जन्म से ही हिमोफिलिया बीमारी थी। हिमोफिलियां (जिसमें चोट लगने पर खून का थक्का नहीं जमता व खून लगातार बहता रहता है उस बीमारी को चिकित्सा विज्ञान में हिमोफिलिया कहते हैं।) हेमन्त जब १) वर्ष का था उस समय वह सिर के बल गिरा तो उसके सिर में खून जमा होकर बडी गांठ बन गयी जिसको ऑपरेशन से निकाला गया व खून ज्यादा बह गया तो हेमन्त को दो बोतल खून चढाना पडा। उसके दो माह बाद हेमन्त फिर गिर गया तो दाँत से उसकी जीभ कट गई तो लगातार ७ दिन तक खून बहना बंद नहीं हुआ। फिर जोधपुर उम्मेद अस्पताल में भर्ती कराया व इसके बाद २३.५.२००२ को हेमन्त फिर गिर गया तो उसके दाँतों के नीचे ठोढी पर चोट लगी तो वहाँ पर खून जमा होकर बडी गांठ बन गयी। ऐसा बार-बार होने पर जोधपुर के रक्क्त रोग विशेषज्ञ डॉ. मनोज लाखोटिया ने हेमन्त के ब्लड फेक्टर ८ और ९ की जांच करवाई जो कि दि. २४.८.२००१ को रेनबेक्सी लेब मुंबई से जांच होकर आई जिससे पता चला कि हेमन्त को हिमोफिलिया बीमारी है। तो डॉ. मनोज लाखोटिया ने बताया कि इस बीमारी का चिकित्सा विज्ञान में कोई इलाज संभव नहीं है। फिर एक दिन हम हमारे भाणजे श्री अजीत कुडी (एडवोकेट) नागौर के घर गये तब उन्होंने बताया कि मामाजी आप हेमन्त को पूज्य सद्गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग साहब के पास ले चलो। तो हमने श्री अजीत कुडी के साथ दि. ३१.७.२००३ को गुरुदेव के पास बीकानेर जाकर दीक्षा ली व हेमन्त को गुरूदेव को बताया तो पुज्य गुरुदेव ने कहा कि हेमन्त की बीमारी ठीक हो जायेगी, इसको लौंग देते रहो। फिर हमने बीकानेर आश्रम से लौंग लिया व नित्य प्रतिदिन गुरुदेव के बताये मंत्र को जपा व उनके बताये अनुसार आज्ञा चक्र पर गुरुदेव की फोटो का, आँख बंद करके ध्यान लगाना शुरू किया। तो हेमन्त १०-१५ दिन बाद से ही ठीक होना शुरू हो गया। अब हेमन्त पूर्ण रूप से ठीक हो गया है अब इसके चोट लगने व दाँत गिरने पर सामान्य बच्चों की तरह ही थोडा सा खून आता है व पूज्य गुरुदेव की कृपा से बन्द हो जाता है। अतः हिमोफिलिया रोग से पीडत व अन्य कोई रोग जिसका चिकित्सा विज्ञान के पास ईलाज संभव नहीं है लोगों से यहीं निवेदन है कि पूज्य समर्थ सद्गुरुदेव द्वारा बताये गये नाम जप व ध्यान योग से शरीर में जो रोग है वो अपने आप ही बिना किसी दवाई के खत्म हो जाते हैं। यह हमारा अटल विश्वास है।      
 - घनश्याम चौधरी
१६, व्यास कॉलोनी, नागौर (राज.)

Get rid of 25 years old opium addiction

Self statement of Manglaram Suthar


     २५ साल पुरानी अफीम की लत से मुक्ति


    मैं मंगलाराम सुथार, बावरली (शेरगढ) उम्र ६२ वर्ष।
यह १९९४ की घटना हैं। मैं मेरे गांव का सबसे बडा अफीमची था। लगभग २-३ तौला अफीम रोजाना खा जाता था। करीब २५ साल से यह बुरी लत पड गई थी। इस कारण मेरे परिवार की बडी दयनीय स्थिति हो गई थी। एक दिन मेरे पडौसी चुतराराम महाराज अमावस बताने मेरे घर आए, जो मेरे से भी बडे बंदाणी (अफीमची) थे। हम दोनों के बीच अच्छी मित्रता थी। जब भी वे मेरे पास आते तो एक-दो दिन के लिए रुक ही जाते थे, परन्तु उस दिन आये तो मैंने उन्हें खूब मान-मनुहार की लेकिन उन्होंने अफीम तो क्या, चाय तक नहीं पी और जाने के लिये रवाना हो गये, तब मैंने आश्चर्य से कहा-महाराज क्या बात हो गई?ऐसा कैसे हुआ?क्या वास्तव में आपने अफीम छोड दिया है?तो वे इतना ही बोले कि, यह सब गुरु-कृपा से छूट गया है। मुझे बडा आश्चर्य हुआ ऐसे गुरु कौन हैं?जरा मुझे भी बताओ-तो उन्होंने चलते हुए ही कह दिया कि कभी समय आने पर बताऊंगा। इस समय जल्दी में हूँ। महाराज के चले जाने के बाद मैं एकदम गम्भीर होकर सोचने लगा। ऐ गुरु केडा है?जो अफीम जैसी खतरनाक चीज से चुतरा महाराज को मुक्त कर दिया हैं इसकी तो मेरे से भी बुरी हालत थी। इस तरह सोचते-सोचते मैं रोजाना गंभीर हो जाता था किन्तु विवश था। महाराज की दोस्ती अफीम से थी उनका अफीम छूट गया, तो उन्होंने मेरे घर आना ही छोड दिया। इस तरह लगभग छः माह हो गये मैं बहुत दुःखी रहने लगा। परन्तु मेरे मन में ऐ गुरु केडा। ऐ गुरु केडा। ऐसी अनवरत रट लग गई। एक दिन संयोगवश दोपहरी में मेरी आंख लग गई-मेरे अन्दर गुरुदेव का चिन्तन चल रहा था। मैं न गुरुदेव को नाम से जानता था न मेरे पास फोटो था बस चुतरा महाराज के गुरु केडा है-ऐसा ही सोच सकता था। गहरी नींद-स्वप्न में मुझे एक साथ सफेद वस्त्रधारी व दाढी वाले भंगवा धारी बाबा दिखाई दिये और मेरे अगल-बगल (दायें-बायें) सिर पर हाथ धर कर बैठ गये और मेरे आगे एकदम शुद्ध अफीम (दूध) की ५ किलो की थैली रख दी और बोले कि तुं तो बहुत बडा बंदाणी है। ले आज जी भर के  खा। इतना सारा-अफीम देखकर मैं बोला! बाबा यह अफीम मैं नहीं खरीद सकता। यह मेरी हैसियत से बाहर है। तब वे बोले भाई हम तुम्हें मुफ्त में खिलाने आये हैं तूं निःसंकोच इसे खा। तब मैंने संकोच वश अंगुली भर लेने की कोशिश की तो सफेदवस्त्र धारी (बाबा) ने मेरा हाथ पकडकर थैली के अन्दर डाल दिया। मेरा हाथ पूरा भर चुका था। मैं चुप चाप घबरा कर चाट गया। ऐसा अच्छा अफीम मैं पहली बार महसूस कर रहा था। दोनों बाबा अन्तर्धान हो गये थे। किन्तु मेरा जी बहुत तेजी से मचलने लगा। मुझे लगा कि मैं मकान की छत पर बैठा हूँ। मुझे उल्टी के लिये नीचे उतरना पडेगा तब जोरदार उल्टी होने लगी तब अचानक मेरी आँख खुल गई तो क्या देखता हूँ कि मैं मेरे घर के आगे चारपाई पर हूँ। और मुझे वास्तव में लगातार उल्टीयां शुरू हो गई इस प्रकार रह-रहकर उस दिन कई बार उल्टीयां हुई और मुझे अफीम से अपने-आप घृणा होने लगी। परन्तु मैं समझ नहीं पा रहा था। स्वप्न में आकर कैसे अफीम खिला दिया और अब मुझे अफीम क्यों नहीं अच्छा लग रहा है ? काफी सोचने के बाद मेरे ध्यान में आया कि यह जरूर चुतरा महाराज के गुरु का चमत्कार हैं। दूसरे दिन सुबह जल्दी मेरी आंख खुल गई। आज मैंने चुतरा महाराज के पास जाने का निश्चय कर लिया। मुझे अफीम की तलब नहीं हो रही थी। परन्तु अफीम के भय के कारण थोडा जबरदस्ती से खा लिया लेकिन वह पूरी तरह बेअसर रहा। रोजाना मैं लगभग ९ बजे तक खाट से दूर नहीं जा पाता था। परन्तु उस दिन मैं चुतरा महाराज के घर सुबह जल्दी उठकर पैदल ही गया। उनका घर मेरे घर से तीन किलोमीटर दूर है। जब मैंने उनके घर जाकर महाराज के बारे में पूछा तो पता लगा कि वे बालेसर गए हुए थे। मैं घरवालों को कहकर आ गया कि महाराज के घर आते ही मेरे घर भेज देना और उनसे कहना कि मुझे भी गुरुदेव के पास ले जावें। मुझे भी अफीम छोडना है।
३-४ दिन बाद महाराज मेरे घर आये और बोले कि अब चिन्ता मत करो। अपने गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग का बालेसर में शक्तिपात-दीक्षा एवं ध्यान-योग कार्यक्रमहैं। आपको जरूर ले जाऊंगा। इस प्रकार सन् १९९४ में बालेसर कार्यक्रम में मैंने गुरुदेव से विधिवत दीक्षा प्राप्त की। गुरुदेव के प्रताप से अफीम पहले ही छोड कर दूर भाग चुकी थी परन्तु मैं अज्ञानता वश खाता रहा था लेकिन मेरे शरीर पर बिल्कुल बे असर था। गुरुदेव के सान्ध्यि पाते ही मुझे दिव्य-दर्शन की जानकारी मिल गई थी। आज मैं बिल्कुल अफीम-मुक्त एवं स्वस्थ व्यक्ति हूँ और सारा दिन काम करता हुआ थकता नहीं हूं। मैं मेरे इलाके में जीता-जागता बहुत बडा उदाहरण हूँ। मुझे देखकर लोगों को भारी ताज्जुब होता हैं कि  बगैर कोई दवा दारू व प्रयास के कैसे अफीम मुक्त हो गया है। सद्गुरु कृपा से मीरा पर जहर का असर न होना मुझे पूर्णतः समझ में आ गया। मैंने १९९४ से दीक्षा ली तब से नियमित नाम-जाप और ध्यान कर रहा हूँ, लेकिन मैंने दूसरे किसी भी व्यक्ति को नहीं बताया क्योंकि मैंने सोचा यदि मैं औरों को बताऊंगा तो वे मेरे गुरुजी को निजर डाल देंगे।
लेकिन अब मैं साधकों से मिला तो उन्होंने कहा कि गुरुदेव के दर्शन का तो ज्यादा से ज्यादा प्रचार-प्रसार करना चाहिए।
- मंगलाराम सुथार (उम्र ६२ वर्ष)
बावरली (शेरगढ), जोधपुर

Sunday, 17 March 2013

Changes in life - meditation on Guru Siyag's photo

Self statement of a disciple


तस्वीर के ध्यान से जीवन बदल गया
सर्वप्रथम सद्गुरुदेव के चरणों में मस्तक टिकाते हुए नमन करता हूँ और कहता हूँ कि गुरुदीक्षा एक अनोखी खान है जिसको जितनी खोदोगे वह उतनी ही बढती जाती है मैंने अभी तक मेरे समर्थ गुरुदेव के साक्षात् दर्शन नहीं किए है।  लेकिन गुरुदेव का ध्यान करने से मन को असीम शांति प्राप्त हुई है। गुरुदेव से जुडने का रहस्य- मेरे परिवार के किसी भी सदस्य के जीवन में गुरु नाम का प्रवेश ही नहीं था।  मैं जब छोटा था तो गुरु नाम में नहीं समझता था लेकिन जब मैं ननिहाल जाता था तब  मामाजी के गुरु बनाए हुए थे, वहाँ से गुरु नाम सुनता था। बाद में बडा होने पर जब मेरे कॉलेज स्तर की पढाई शुरू हुई तो मैं और मेरा एक दोस्त कमरा लेकर रहने लगे तो वह मेरे को बताता था कि गुरु होने चाहिए । एक मारवाडी भजन में भी कहा है कि- ’’बिन गुरु घोर अंधेरा रे संतों‘‘। तो वह बताता था कि गुरु बिना मनुष्य निगुराहोता है। चाहे वह कितनी भी भक्ति क्यों ने कर ले सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता है, गुरु तो भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण के भी थे।
तब से मैंने सोचा कि गुरु तो बनाने ही है, इस प्रकार दो वर्ष बीत गए। लेकिन मैं गुरु नहीं बना पाया क्योंकि भगवान् को कुछ अलग ही मंजूर मुझे शारीरिक कष्टों ने जकड लिया इसलिए मैंने बालाजी की पूजा करनी शुरू कर दी, लेकिन सिर का दर्द पीछा नहीं छोड रहा था। अस्पतालों के खूब चक्कर काटे लेकिन कोई फर्क नहीं पडा। तब मुझे मेरी सासूजी ने बताया कि आप गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग का ध्यान करो आफ सारे कष्टों का निवारण हो जाएगा। लेकिन तस्वीर का ध्यान करने से कोई रोग ठीक जो जाता हैं यह बात मन नहीं मान रहा था। कुछ दिनों बाद वे जोधपुर आए तो गुरुदेव की मासिक पत्रिका साथ लेकर आए, इस पत्रिका पर गुरुदेव का फोटो था तो मैंने उनसे पूछा कि यही है आफ गुरुदेव तो उन्होंने बताया हाँ यही है गरुदेव। पत्रिका देकर कहा कि आज से आप गुरुदेव का ध्यान शुरू कर दो, सब कुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन मैंने फिर भी नहीं माना। महीने भर बाद एक दिन कमरे में अकेला ही बैठा था तो मैंने सोचा कि सासूजी ने उस दिन बताया था कि आप गुरुदेव का ध्यान करो, सब कुछ ठीक हो जाएगा। तो मैं गुरुदेव की पत्रिका जिस पर गुरुदेव की फोटो थी, वह लेकर बैठ गया और मन ही मन मंत्र जप करने लगा, जब पहली बार ध्यान किया तो कुछ परिवर्तन तो नहीं दिखा लेकिन मन ऐसा हो गया कि कल और ध्यान करेंगे- इस तरह पाँच-छह दिन बाद मन भी स्थिर होने लगा और ध्यान भी लगने लगा और ध्यान करने के बाद जब गुरुदेव की फोटो के सामने से उठता था तो मैं शरीर मैं तन्दुरस्ती सी अनुभव करने लगा और पढाई में मन लगने लगा। धीरे-धीरे सिरदर्द भी पीछा छोडने लगा और वर्तमान में तो कोई भी शारीरिक कष्ट मुझे नहीं सता रहे हैं। बिल्कुल स्वस्थ हूँ। अब तो मैं एक मिनट क्या एक सैकण्ड भी गुरुदेव को नहीं भूल पाता हूँ।
इतनी कृपा तो गुरुदेव के निर्जीव फोटो से भी हो गई तो यदि मैं गुरुदेव के साक्षात् रूप के दर्शन करूँगा तो क्या होगा? यह मेरे गुरुदेव ही जानते हैं
महेन्द्र सिंह जाखड

Wednesday, 13 March 2013

Cure from Diabetes

Self statement of a diabetes cured patient


  तीन दिन में डायबिटीज(षुगर) ठीक हुआ




सर्वप्रथम मैं अपने समर्थ सद्गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग  को सादर प्रणाम करता हूँ जिन्होंने मुझे नया जीवन प्रदान किया।
मैं सन् १९९५ में अचानक बीमार हो गया था। डॉक्टर के पास गया तो उन्होंने मुझे षुगर(डायबिटीज) की जाँच के लिये भेजा। जाँच में  षुगर बढा हुआ आया। डॉक्टर ने दवाई  देते हुए मुझे बोला कि आपको डायबिटिज हो गई है और लगातार जीवन भर दवाई लेनी पडेगी। ज्यादा तबीयत खराब होने पर मैं लुधियाना गया तथा  डायबिटिज स्पेषलिस्ट डॉ. थापर क दिखाया । वहां से मैनें लगातार चार साल तक दवाइर्याँ ली। लेकिन मेरी तबीयत ठीक नहीं हो पाई। फिर मैंने जयपुर डॉक्टर षर्मा को दिखाया वहां पर भी डॉक्टर ने जीवन भर दवाई खाने को कह दिया। फिर कई जगह दिखाया वही दवाई लिखी गई । मेरी बीच में इतनी तबीयत खराब हो गई थी कि घरवालों ने अन्तिम सांस लेने के क्रम में मुझे बिस्तर से नीचे धरती पर उतार दिया था।  पेषाब से खून आना, फेंफडों में  टी.बी. हो जाना, हाथों का ऊपर न उठना जैसी कई बीमारियों ने घेर लिया था। मुझे जयपुर के लिये रेफर कर दिया। एक बार फिर मृत सा हो गया था। वहाँ पर थोडा फर्क पडा। फिर मैंने बीकानेर के डॉक्टर अग्रवाल को दिखाया। उन्होंने मुझे दवाई देकर घर भेज दिया, उससे मुझे  कुछ राहत मिली लेकिन पूर्ण रूप से परेशानी मिटी नहीं तो मैं इलाज के लिए मुम्बई गया। उन्होंने मेरा  पेषाब से खून रुकने का व टी.बी. का ईलाज चालू किया। कुछ दिनों का ईलाज लेने के बाद कुछ फायदा नहीं हुआ तो मैं वापिस बहरोड आ गया। फिर मैं जहां षुगर की जांच करवाता था उन्होंने मुझे पहले गुरुदेव के बारे में बताया था लेकिन मुझे विष्वास नहीं हुआ था।
मैंने ४-५ लाख रूपये इन बीमारीयों पर खर्च कर दिये लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ तो उनके  आषीर्वाद, मंत्र जप व ध्यान से क्या होगा ? मुझे नहीं मालुम कि मंत्र व गुरु कृपा में इतनी शक्ति होती है! लेकिन उन्होंने भी जिद नही छोडी। फिर एक दिन बीकानेर में डॉ. अग्रवाल को दिखाने के लिये जा रहा था तो रास्ते मे यशकुमार जी शर्मा  मिल गये उन्होंने मुझे बताया कि दो दिन बाद बीकानेर में ही गुरुदेव का षक्तिपात दीक्षा क्रार्यकम है, मैंने ऊपरी तोर पर हां करके चल दिया। लेकिन मेरे मन में कार्यकम में जाने की इच्छा नहीं थी। दूसरे दिन बीकानेर पहुँचकर डॉ. अग्रवाल को दिखया तो उन्होने षुगर की जांच की जिसमे मेरा षुगर (खाली पेट) ४७४ मिग्रा आया। डॉ. साहब ने कहा कि यह तो बहुत ज्यादा है। आप चल कर अकेले ही कैसे आ गये ? मेरे को भी झटका लगा तो मैने उस समय  मन ही मन गुरुदेव को याद करके कहा कि गुरूदेव अब तक तो आफ पास नहीं आया लेकिन अब अवश्य आऊंगा। डॉ. साहब ने कहां कि आप कल इसी तरह फिर आना। दूसरे दिन सुबह खाली पेट गया तो षुगर २५९ रह गया। डॉ साहब क आष्चर्य हुआ। मैं षाम को होने वाले दीक्षा क्रार्यकम में गया। गुरुदेव से दीक्षा लेकर घर आया।  मंत्र का सघन जप किया। सुबह फिर से डॉ. अग्रवाल से षुगर की जांच करवाई तो षुगर केवल १०९ पर आ गया था। इस तरह कल्कि अवतार श्री रामलाल जी सियाग के सानिध्य से मात्र तीन दिन में मेरी षुगर की बीमारी ठीक हो गई तथा पेषाब में खून आना व टी.बी. की बीमारी सभी धीरे-धीरे पूर्ण रूपसे ठीक हो गये।
मैं तो यही कहना चाहता हूँ कि ७२ वर्श की उम्र में गुरूदेव ने मुझे नया जीवनदान दिया है। दीक्षा लिये हुए लगभग ३-४ वर्श हो गये है। आज मेरे भगवान् श्री रामलाल जी सियाग की वजह से मेरा जीवन सुखमय, आनन्दमय, अध्यात्ममय है। मैं मेरे पिछले नारकीय जीवन को भूलाकर पूर्णरूप से सद्गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग साहब के चरणों मे ध्यान लगाकर बिता रहा हूँ।
१.सन् १९९५ में अचानक बीमार पडा। २. डॉक्टर ने जाँच में डायबिटीज बताया। ३. अलवर,बीकानेर ,जयपुर, लुधियाना व मुम्बई आदि शहरों में इलाज कराया लेकिन बीमारी बढती गई। ४. फेंफडों की टी. बी. व पेशाब में खून का आना। ५. डॉक्टरों ने जीवन भी दवाईयाँ खाने की सलाह दी। ६. बीकानेर में डॉ. अग्रवाल से चैक कराया तो खाली पेट शुगर की मात्रा ४७४ मिलीग्राम आई। अचानक मुझे झटका लगा। उसी समय मुझे पूज्य सद्गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग की याद आई।  मैंने मन ही मन गुरुदेव से प्रार्थना की कि अब मुझ पर कृपा करो। दूसरे दिन जाँच कराने पर शुगर की मात्रा २५९ मिलीग्राम आई। ७. उसी दिन शाम को गुरुदेव से दीक्षा ली। ८. तीसरे दिन जाँच में शुगर की मात्रा १०९ आई।
९. जबकि अब तक इलाज में ४-५ लाख रुपये खर्च हो चुके थे।
अब गुरु कृपा से जीवन सुखमय व स्वास्थ्यमय हैं।-
नत्थुराम
नये अस्पताल के पास
बरहोड (अलवर) राज.

Cure from Kidney stone problem



Self statement of a patient cured of Kidney stone disease



 मैं सत्यवान सिंह भारतीय नौसेना में कार्यरत हूँ। सबसे पहले मैं पूज्य सद्गुरुदेव श्री रामलालजी सियाग के चरण कमलों में कोटि-कोटि नमन करता हूँ। मैं सन् १९९२ से गुर्दे की पथरी से परेशान था। बहुत भंयकर दर्द होता था। सन् १९९६ में मैंने नजफगढ, दिल्ली से पथरी के लिए ४५ दिन की देशी दवाई ली। जिससे एक काफी बडा पत्थर का टुकडा पेशाब में निकला, लेकिन पूरी पथरी नहीं निकली।
मैंने फरवरी २००६ में एक्स-रे करवाया जिसमें दाहिने गुर्दे में काफी बडी पथरी दिखाई दी। एयरफोर्स के डाक्टर ने उसी दिन सैनिक अस्पताल नासिक रेफर कर दिया। नासिक से डाक्टर न अश्विनी नेवी अस्पताल में रेफर कर दिया। २९.४.२००६ को प्ण्छण्भ्ण्ैण् अश्विनी अस्पताल में मेरा ;च्ब्छस्द्ध सर्जरी हुआ, जिसमें बडी पथरी को तोडकर बाहर निकाला। ऑपरेशन के बाद जब एक्स-रे हुआ तो पाँच टुकडे पथरी के दिखाई दिये जो ऑपरेशन के दौरान गुर्दे में छूट गए थे।
पाँचों टुकडों को निकालने के लिए अस्पताल के चक्कर लगने शुरू हो गए। इन पथरियों को तोडने के लिए तीन बार लेजर थैरेपी (१३ जून २००६, ०४ अगस्त २००६ तथा २४ अक्टुबर २००६) हुई। लेजर थैरपी में पत्थर को मशीन द्वारा शरीर में ही पाउडर बना दिया जाता है, जिससे टूटी हुई पत्थरी पेशाब के साथ बाहर निकल जाती है। तीनों बार पथरी बिल्कुल भी नहीं टूटी।      ३०.१२.२००६ को एक बार फिर ;च्ब्छस्द्ध ऑपरेशन किया जिसमें सिर्फ एक पथरी निकाली और चार पथरी फिर भी नहीं निकल पाई।
मैंने फरवरी २००६ से फरवरी २००९ तक बहुत देशी दवाइयाँ खाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इसी दौरान नागल चौधरी हरियाणा से एक भगतजी ने दो-दो लीटर नीम्बू के जूस बनाकर दी, जिसे मैंने पूरे परहेज के साथ ली, लेकिन बिल्कुल भी फायदा नहीं हुआ। गुडगाँव हरियाणा से दवाई ली। चार-पाँच बार, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
स्वामी रामदेवजी की दवाईः- अक्टूबर २००७ से फरवरी २००८ तक यानि पाँच महिने स्वामी रामदेवजी की दवाई पंचवटी जिला नाशिक महाराष्ट्र के एक औषद्यालय से ली। दवाई पूरे परहेज के साथ व जो-जो प्राणायाम बताये उनके अनुसार ली, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। परहेज में जो चीजें नहीं खानी थी वो इस प्रकार हैः- पालक, चौलाई, टमाटर, बैंगन, भिन्डी, फूल गोबी, कद्दू, खीरा, काले अंगूर, आंवला, चीकू, काजू मसरुम, तिल, अण्डे, मांस, दूध व दूध से बनी चीजें, चावल इत्यादि।
फिर ओझर जिला नाशिक के डाक्टर करूले से चार पाँच महीन दवाई ली, लेकिन कोई फायदा नहीं मिला, जबकि दर्द वैसे ही होता रहा। डाक्टर करूले ने स्वयं दवाई बन्द कर दी, यह कहकर कि मेरे बस का काम नहीं। उसके बाद मेरे एक दोस्त ने अम्बाला हरियाणा से लाकर दवाई दी, उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ। फिर एक डाक्टर मिला जिसने दो महिने की देशी दवाई दी कि इससे पथरी गारन्टी से निकल जाएगी। उससे पथरी निकली नहीं जबकि साइज में बढ गई।
मुझे दि. २९.१.२००९ को नासिक से अश्विनी बोम्बे भेज दिया। अस्पताल में जाते ही फिर १०.२.२००९ ;म्ैॅस्द्ध लेजर थैरपी की तारीख मिल गई। इसी दौरान मेरी मुलाकात अर्जुन सिंहजी, ओमबीरजी व बुधाराम विश्नोईजी से हुई, ये तीनों भारतीय नौसेना में कार्य करते हुए अश्विनी अस्पताल के गार्डन में मरीजों को शाम को ध्यान करवाते हैं। अर्जुन सिंह जी ने मुझे भी गुरुदेव का फोटो दिया तथा ध्यान का तरीका बताया। मैंने ३.२.२००९ की शाम सभी के साथ ध्यान लगाया। मेरा पहले ही दिन जबरदस्त ध्यान लगा। शीर्षाशन लगा, मूल बन्ध, उडयान बंध व जालन्धर बन्द एक साथ लगे। ध्यान के दौरान श्री कृष्ण जी बांसुरी बजाते हुए मेरे सामने आकर खडे हो गए। ध्यान के बाद मैंने बताया कि ध्यान के दौरान इस प्रकार के अनुभव हुए तो गुरु भाई कहने लगे आपको तो महाबंध लग गया। जबकि मैं बंधों के बारे में कुछ भी नहीं समझता था, मैं तो सिर्फ प्राणायाम करता था। दो-तीन दिन बाद मेरी जीभ मुडती हुई तालु से जा चिपकी, मैंने जब इसके बारे में बताया तो वे कहने लगे कि आपको तो खेचरी मुद्रा लग गई। इससे पहले खेचरी मुद्रा के बारे में मुझे कुछ भी मालूम नहीं था कि खेचरी मुद्रा क्या होती है?
फिर १०.२.२००९ का दिन आ गया, मेरी पुनः पत्थरी तोडी गई लेकिन थैरेपी (म्ैॅस्) के द्वारा ११.२.२००९ को फिर एक्स-रे हुआ जिसमें चारों पथरियां वैसे ही दिखाई दी, जैसे पहले थी यानि नतीजा फिर वही ढाक के तीन पात।
ध्यान के दौरान दर्शन ः-
ध्यान के दौरान मुझे श्री कृष्ण, दादा गुरुदेव श्री गंगाईनाथजी, शिवलिंग, शिव पार्वती, सांई बाबा महर्षि अरविन्द, माता शेरां वाली, लक्ष्मी माता, हनुमान जी आदि देवताओं के दर्शन हुए।
डाक्टर साहब ने मेडिकल कैटेगरी डाउन करके १६.२.२००९ को अस्पताल से छुट्टी दे दी। मैं बॉम्बे से नाशिक रेलगाडी से आ रहा था। ए.सी. के एक केबिन जो बिल्कुल खाली था, मैं वहीं बैठकर ध्यान लगाने लगा। ध्यान के दौरान गुरुदेव ने मुझसे पूछा-अस्पताल से आ गये, हुआ कोई फायदा?मैंने कहा नहीं गुरुदेव। तब गुरुदेव ने कहा, अब आपका ईलाज मैं करता हूँ, और इसके बाद मेरा ध्यान खुल गया। ध्यान से उठकर जब मैं पेशाब करने गया तो काफी बडा पथरी का टुकडा पेशाब में निकला। मैं वापिस नासिक पहुँच गया। वहाँ जाने के बाद ७-८ दिन में उतनी ही साइज के पाँच पथरी के टुकडे और निकले ये सभी पथरियां बिना दर्द हुए ही निकली।
५.३.२००९ को मैं सूरत (गुजरात) जाकर गुरुदेव से दीक्षा लेकर आया। एक चीज लिखना भूल गया था कि तीन वर्ष में (२००६ से २००९ तक) मैंने पत्थर चट के पत्ते व कुल थी की दाल इतनी खाई कि उनका नाम मात्र लेने से मुझे उल्टी आने लगती है, लेकिन वे भी मेरी पथरी नहीं निकाल सकें। अब मैं ना तो कोई पथरी की दवा खा रहा हूँ और ना ही किसी प्रकार का परहेज कर रहा हूँ। सिर्फ सुबह शाम गुरुदेव का ध्यान करता हूँ व बाकी समय मन्त्र चलता रहता है, गुरुदेव से दीक्षा लेने के बाद सब कुछ अच्छा चल रहा है। घर में परिवार के सभी सदस्य गुरुदेव की फोटो से ध्यान करते हैं।
मैं पूज्य सद्गुरुदेव श्रीरामलालजी सियाग के चरणों में बार-बार प्रणाम करता हूँ। मैं तो कहता हूं गुरुदेव की कृपा से यह पथरी तो क्या पहाड भी टूट सकता है। ’’जयगुरुदेव श्री रामलालजी सियाग‘‘ जय दादा गुरुदेव गंगाईनाथजी
’’पथरी तो एक बहाना था, गुरुशरण में आना था।‘‘
- सत्यवान सिंह ेध्व श्री श्रीराम
गाँव-गांवडी, जाट, तह. नारनौल,
 जिला. महेन्द्रगढ, हरियाणा