तस्वीर के ध्यान से जीवन बदल गया
सर्वप्रथम सद्गुरुदेव के चरणों में मस्तक टिकाते हुए नमन करता हूँ और कहता हूँ
कि गुरुदीक्षा एक अनोखी खान है जिसको जितनी खोदोगे वह उतनी ही बढती जाती है मैंने
अभी तक मेरे समर्थ गुरुदेव के साक्षात् दर्शन नहीं किए है। लेकिन गुरुदेव का ध्यान करने से मन को असीम
शांति प्राप्त हुई है। गुरुदेव से जुडने का रहस्य- मेरे परिवार के किसी भी सदस्य
के जीवन में गुरु नाम का प्रवेश ही नहीं था।
मैं जब छोटा था तो गुरु नाम में नहीं समझता था लेकिन जब मैं ननिहाल जाता था
तब मामाजी के गुरु बनाए हुए थे, वहाँ से गुरु नाम सुनता था। बाद में बडा होने पर जब मेरे कॉलेज स्तर की पढाई
शुरू हुई तो मैं और मेरा एक दोस्त कमरा लेकर रहने लगे तो वह मेरे को बताता था कि
गुरु होने चाहिए । एक मारवाडी भजन में भी कहा है कि- ’’बिन गुरु घोर अंधेरा रे संतों‘‘। तो वह बताता
था कि गुरु बिना मनुष्य ’निगुरा‘ होता है। चाहे वह कितनी भी भक्ति क्यों ने कर ले सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता
है, गुरु तो भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण के भी थे।
तब से मैंने सोचा कि गुरु तो बनाने ही है, इस प्रकार दो
वर्ष बीत गए। लेकिन मैं गुरु नहीं बना पाया क्योंकि भगवान् को कुछ अलग ही मंजूर
मुझे शारीरिक कष्टों ने जकड लिया इसलिए मैंने बालाजी की पूजा करनी शुरू कर दी, लेकिन सिर का दर्द पीछा नहीं छोड रहा था। अस्पतालों के खूब चक्कर काटे लेकिन
कोई फर्क नहीं पडा। तब मुझे मेरी सासूजी ने बताया कि आप गुरुदेव श्री रामलाल जी
सियाग का ध्यान करो आफ सारे कष्टों का निवारण हो जाएगा। लेकिन तस्वीर का ध्यान
करने से कोई रोग ठीक जो जाता हैं यह बात मन नहीं मान रहा था। कुछ दिनों बाद वे
जोधपुर आए तो गुरुदेव की मासिक पत्रिका साथ लेकर आए, इस पत्रिका पर गुरुदेव का फोटो था तो मैंने उनसे पूछा कि यही है आफ गुरुदेव
तो उन्होंने बताया हाँ यही है गरुदेव। पत्रिका देकर कहा कि आज से आप गुरुदेव का
ध्यान शुरू कर दो, सब कुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन मैंने
फिर भी नहीं माना। महीने भर बाद एक दिन कमरे में अकेला ही बैठा था तो मैंने सोचा
कि सासूजी ने उस दिन बताया था कि आप गुरुदेव का ध्यान करो, सब कुछ ठीक हो जाएगा। तो मैं गुरुदेव की पत्रिका जिस पर गुरुदेव की फोटो थी, वह लेकर बैठ गया और मन ही मन मंत्र जप करने लगा, जब पहली बार ध्यान किया तो कुछ परिवर्तन तो नहीं दिखा लेकिन मन ऐसा हो गया कि
कल और ध्यान करेंगे- इस तरह पाँच-छह दिन बाद मन भी स्थिर होने लगा और ध्यान भी
लगने लगा और ध्यान करने के बाद जब गुरुदेव की फोटो के सामने से उठता था तो मैं
शरीर मैं तन्दुरस्ती सी अनुभव करने लगा और पढाई में मन लगने लगा। धीरे-धीरे
सिरदर्द भी पीछा छोडने लगा और वर्तमान में तो कोई भी शारीरिक कष्ट मुझे नहीं सता
रहे हैं। बिल्कुल स्वस्थ हूँ। अब तो मैं एक मिनट क्या एक सैकण्ड भी गुरुदेव को
नहीं भूल पाता हूँ।
इतनी कृपा तो गुरुदेव के निर्जीव फोटो से भी हो गई तो यदि मैं गुरुदेव के
साक्षात् रूप के दर्शन करूँगा तो क्या होगा? यह मेरे
गुरुदेव ही जानते हैं
महेन्द्र सिंह जाखड
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